भारत और विश्व
के लिए संस्कृत
का महत्त्व-
संस्कृत हजारो वर्षो से
अस्तित्व में हैं
इसका कारण हैं
कि संस्कृत केवल
एक मात्र भाषा
नहीं है अपितु
संस्कृत एक विचार
है संस्कृत एक
संस्कृति है एक
संस्कार है संस्कृत
में विश्व का
कल्याण है शांति
है सहयोग है
वसुदैव कुटुम्बकम् कि भावना
है समाज को
एक रखने का
संस्कार हैं अबतक
भारत में संस्कृत
का महत्त्व रहा
हैं इसलिये भारत
और संस्कृत का
अस्तित्व हैं |
संस्कृत कई भारतीय
भाषाओं की माता
है। इनकी अधिकांश
शब्दावली या तो
संस्कृत से ली
गयी है या
संस्कृत से प्रभावित
है। पूरे भारत
में संस्कृत के
अध्ययन-अध्यापन से भारतीय
भाषाओं में अधिकाधिक
एकरूपता आयेगी जिससे भारतीय
एकता बलवती होगी।
यदि इच्छा-शक्ति
हो तो संस्कृत
को हिब्रू की
भाँति पुनः प्रचलित
भाषा भी बनाया
जा सकता है।
हिन्दू, बौद्ध, जैन आदि
धर्मों के प्राचीन
धार्मिक ग्रन्थ संस्कृत में
हैं।
हिन्दुओं के सभी
पूजा-पाठ और
धार्मिक संस्कार की भाषा
संस्कृत ही है।
हिन्दुओं, बौद्धों और जैनों
के नाम भी
संस्कृत पर आधारित
होते हैं।
भारतीय भाषाओं की तकनीकी
शब्दावली भी संस्कृत
से ही व्युत्पन्न
की जाती है।
भारतीय संविधान की धारा
343, धारा 348 (2) तथा 351 का सारांश
यह है कि
देवनागरी लिपि में
लिखी और मूलत:
संस्कृत से अपनी
पारिभाषिक शब्दावली को लेने
वाली हिन्दी राजभाषा
है।
संस्कृत, भारत को
एकता के सूत्र
में बाँधती है।
संस्कृत का प्राचीन
साहित्य अत्यन्त प्राचीन, विशाल
और विविधतापूर्ण है।
इसमें अध्यात्म, दर्शन,
ज्ञान-विज्ञान और
साहित्य का खजाना
है। इसके अध्ययन
से ज्ञान-विज्ञान
के क्षेत्र में
प्रगति को बढ़ावा
मिलेगा।
संस्कृत को कम्प्यूटर
के लिये (कृत्रिम
बुद्धि के लिये)
सबसे उपयुक्त भाषा
माना जाता है।
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